Prithviraj Chauhan History in Hindi | पृथ्वीराज चौहान Biography in Hindi

नमस्कार दोस्ततो स्वागत है आपका हमारे Blog - Hindi Best Stories मैं। आज हम Prithviraj Chauhan History in Hindi में चौहान वंश जन्मे हिंदूऔ के आखरी शासक पृथ्वीराज चौहान के जीवन के बारे में परिचय और Prithviraj chauhan ka itihas hindi me बताने वाले है।
Prithviraj Chauhan एक ऐसे शूरवीर योद्धा थे जिनके साहस और पराक्रम के किस्से भारतीय इतिहास के पन्नों पर सुवर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं। वे एक आकर्षक कद काठी के योद्धा थे, जो सभी सैन्य विद्याओं में निपुण थे। उन्होंने अपने अद्भुत साहस से दुश्मनों को धूल चटाई थी उनकी वीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, जब मोहम्मद गौरी द्वारा उन्हें बंधक बना लिया गया और उनसे उनकी आँखों की रौशनी भी छीन ली गई तब भी उन्होंने मोहम्मद गौरी के दरबार में उसे मार गिराया था।
पृथ्वीराज चौहान के करीबी दोस्त एवं कवि "चंद बरदाई" ने अपनी काव्य रचना Prithviraj Chauhan history in hindi रासो में यह भी उल्लेख किया है कि पृथ्वीराज चौहान घोड़ों में हाथियों को नियंत्रित करने की विद्या में भी निपुण थे।
तो जानते हैं Prithviraj Chauhan History in Hindi और इनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें।
भारतीय इतिहास के सबसे महान और साहसी योद्धा Prithviraj Chauhan. चौहान वंश के क्षेत्रीय शासक "सोमेश्वर" और "कर्पूरादेवी" के घर साल 1163 (आंग्ल पंचांग के अनुसार) में जन्मे थे। ऐसा कहा जाता है कि वे उनके माता पिता की शादी के कई सालों बाद काफी पूजा पाठ और मन्नतें मांगने के बाद जन्मे थे।
वहीं उनके जन्म के समय से ही उनकी मृत्यु को लेकर राज्य सोमेश्वर के राज़ में षड्यंत्र रचे जाने लगे थे। लेकिन उन्होंने अपने दुश्मनों की हर साजिश को नाकाम कर दिया और वे अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते चले गए। राज़ घराने में पैदा होने की वजह से ही शुरू से ही पृथ्वीराज चौहान का पालन पोषण काफी सुख सुविधाओं से परिपूर्ण अर्थात वैभव पूर्ण वातावरण में हुआ था।
उन्होंने "सस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ" से शिक्षा प्राप्त की थी, जबकि युद्ध और शस्त्र विद्या की शिक्षा उन्होंने अपने गुरु "श्री राम" जी से प्राप्त की थी। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही बेहद साहसी, पराक्रमी और युद्ध कला में निपुण थे। शुरुआत से ही पृथ्वीराज चौहान ने शब्द भेदी बाण चलाने की अद्भुत कला सीख ली थी। जिसमें वे बिना देखे आवाज के आधार पर बाण चला सकते थे और सटीक निशाना लगा सकते थे।

इसके अलावा पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली पर भी अपना सिक्का चलाया, दरअसल उनकी माँ "करपूरा देवी" अपने पिता "आनंदपाल" की इकलौती बेटी थी। इसलिए उनके पिता ने अपने दामाद और अजमेर के शासक "सोमेश्वर चौहान" से "पृथ्वीराज चौहान" की प्रतिभा को भांपते हुए अपने साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की इच्छा प्रकट की थी।
जिसके तहत ११६६ में उनके नाना "आनंदपाल " की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के राज़ सिंहासन पर बैठे और कुशलतापूर्वक उन्होंने दिल्ली की सत्ता संभाली। एक आदर्श शासक के तौर पर उन्होंने अपने साम्राज्य को मजबूती देने के लिए कई कार्य किया और इसके विस्तार करने के लिए कई अभियान भी चलाए और इस प्रकार वे एक वीर योद्धा एवं लोकप्रिय शासक के तौर पर पहचाने जाने लगे।
Prithviraj Chauhan और रानी संयोगिता की प्रेम कहानी की आज भी मिसाल दी जाती है और उनकी प्रेम कहानी पर कई टीवी सीरियल्स और फ़िल्में भी बन चुकी है। पृथ्वीराज चौहान की अद्भुत साहस और वीरता के किस्से हर तरफ थे। जब राजा जयचंद की बेटी संयोगिता ने उनकी बहादुरी और आकर्षण के किस्से सुने तो उनके हृदय में पृथ्वीराज चौहान के लिए एक प्रेम भावना उत्पन्न हो गई और वे चोरी छिपे गुप्त रूप से पृथ्वीराज चौहान को पत्र भेजने लगी। पृथ्वीराज चौहान भी राजकुमारी संयोगिता की खूबसूरती से बेहद प्रभावित थे और वे भी जकुरामारी की तस्वीर देखते ही उनसे प्यार कर बैठे थे।
वहीं दूसरी तरफ जब रानी संयोगिता के बारे में उनके पिता राजा जयचंद को पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी "संयोगिता" की विवाह के लिए स्वयंवर करने का फैसला किया। वहीं इस दौरान राजा जयचंद ने समस्त भारत पर अपना शासन चलाने की इच्छा के चलते अश्वमेध यज्ञ का आयोजन भी किया था। इस यज्ञ के बाद ही रानी संयोगिता का स्वयंवर होना था।
वही Prithviraj Chauhan नहीं चाहते थे कि क्रूर और घमंडी राजा जयचंद का भारत में प्रभुत्व हो, इसलिए उन्होंने राजा जयचंद का विरोध भी किया था। जिसे राजा जयचंद के मन में पृथ्वीराज के प्रति घृणा और भी ज्यादा बढ़ गई, जिसके बाद उन्होंने अपनी बेटी के स्वयंवर के लिए देश के कई छोटे बड़े बड़े महान योद्धाओं को आपने वहा न्योता दिया लेकिन पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए राजा ने न्योता नहीं भेजा और अपने द्वारपालों के स्थान पर पृथ्वीराज चौहान की मूर्तियां लगा दी।

वही Prithviraj Chauhan जयचंद की चालाकी को समझ गए और उन्होंने अपनी प्रेमिका को पाने के लिए एक गुप्त योजना बनाई। बता दें कि उस समय हिंदू धर्म में लड़कियों को अपना मनपसंद वर चुनने का अधिकार था। वहीं अपने स्वयंवर में जिस भी व्यक्ति को गले में माला डाल ती वो उसकी रानी बन सकती थी।
वही स्वयंवर के दिन जब कई बड़े बड़े राजा अपने सौंदर्य के लिए पहचानी जाने वाली राजकुमारी संयोगिता से विवाह करने के लिए शामिल हुए। उसी समय स्वयंवर में जब संयोगिता अपने हाथों में वरमाला लेकर एक एक कर सभी राजाओं के पास से गुजरी और उनकी नजर द्वार पर स्थित पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति पर पड़ी, तब उन्होंने द्वार पर खड़ी पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति पर हार डाल दिया जिसे देखकर स्वयंवर में आए सभी राजा खुद को अपमानित महसूस करने लगे। (Read full Prithviraj Chauhan Biography in Hindi)
वहीं पृथ्वीराज चौहान अपनी गुप्त योजना के मुताबिक राजा के द्वारपाल की प्रतिमा के पीछे खड़े थे, और तभी उन्होंने जयचंद के सामने उनकी बेटी संयोगिता को उठाया और उपस्थित सभी राजाओं को युद्ध के लिए ललकार कर वे अपनी राजधानी दिल्ली चले गए। इसके बाद राजा जयचंद गुस्से से आगबबूला हो गया और इसका बदला लेने के लिए उसकी सेना ने पृथ्वीराज चौहान का पीछा किया, लेकिन उसकी सेना महान पराक्रमी पृथ्वीराज चौहान को पकड़ने में असमर्थ रही।
जयचंद की सैनिक पृथ्वीराज चौहान का बाल भी बांका नहीं कर सके। हालांकि इसके बाद राजा जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच साल ११८९ और ११९० में भयंकर युद्ध हुआ। जिसमें कई लोगों की जानें गईं और दोनों सेनाओं को भारी नुकसान पहुंचा। दूरदर्शी शासक पृथ्वीराज चौहान की सेना बहुत बड़ी थी, जिसमें करीब ३,००,००० सैनिक और ३०० हाथी थे, उनकी विशाल सेना में घोड़ों की सेना का भी खासा महत्व था।

पृथ्वीराज चौहान ने अपने इस विशाल सेना की वजह से ना सिर्फ कई युद्ध जीते बल्कि वे अपने राज्य का विस्तार करने में भी कामयाब रहे। वहीं पृथ्वीराज चौहान जैसे जैसे युद्ध जीते गए वैसे वैसे वे अपनी सेना को भी बढ़ाते गए। चौहान वंश की सबसे बुद्धिमान और दूरदर्शी शासक पृथ्वीराज चौहान ने अपने शासनकाल में अपने राज्य को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया था। उन्होंने अपने राज्य में अपनी कुशल नीतियों के चलते अपने राज्य के विस्तार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।
पृथ्वीराज चौहान पंजाब में भी अपना सिक्का ज़माना चाहते थे, लेकिन उस दौरान पंजाब में मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी का शासन था। वही पृथ्वीराज चौहान की पंजाब पर राज़ करने की इच्छा मोहम्मद गौरी के साथ युद्ध करके ही पूरी हो सकती थी। जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने अपने विशाल सेना के साथ मोहम्मद गौरी पर आक्रमण कर दिया।
इस हमले के बाद पृथ्वीराज चौहान ने सरहिंद, सरस्वती और हँसी पर अपना राज़ स्थापित कर लिया, लेकिन इसी बीच अन्हिलवाड़ा में जब मोहम्मद गौरी की सेना ने हमला किया तो पृथ्वीराज चौहान का सैन्य बल कमजोर पड़ गया, जिसके चलते पृथ्वीराज चौहान को सरहिंद के किले से अपना अधिकार खोना पड़ा। बाद में पृथ्वीराज चौहान ने अकेले ही मोहम्मद गौरी का वीरता के साथ मुकाबला किया, जिसके चलते मोहम्मद गौरी बुरी तरह घायल हो गया और बाद में मोहम्मद गौरी को इस युद्ध को छोड़कर भागना पड़ा हालांकि इस युद्ध का कोई निष्कर्ष नहीं निकला।

यह युद्ध Sirhind के किले के पास "Tarain" नाम की जगह पर हुआ था। इसलिए इसे "तराइन का युद्ध" भी कहा जाता है, कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को 17 बार पराजित किया था। लेकिन हर बार उन्होंने उसे जीवित ही छोड़ दिया। वही Prithviraj Chauhan से इतनी बार हारने के बाद मोहम्मद गौरी मन ही मन प्रतिशोध की भावना से भर गया था। वहीं जब संयोगिता के पिता और पृथ्वीराज चौहान के कट्टर दुश्मन जयचंद को इस बात की भनक लगी तो उसने मोहम्मद गौरी से अपना हाथ मिला लिया और दोनों ने पृथ्वीराज चौहान को जान से मारने का षडयंत्र रचा।
इसके बाद दोनों ने मिलकर साल ११९२ में अपने मजबूत सैन्य बल के साथ पृथ्वीराज चौहान पर फिर से हमला किया। वहीं जब इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान अकेले पड़ गए थे, तब उन्होंने अन्य राजपूत राजाओं से मदद मांगी थी, लेकिन स्वयंवर में Prithviraj Chauhan द्वारा किए गए अपमान को लेकर कोई भी शासक उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। इस मौके का फायदा उठाते हुए राजा जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान का भरोसा जीतने के लिए अपना सैन्य बल पृथ्वीराज चौहान को सौंप दिया।
वहीं उदार स्वभाव के पृथ्वी राज़ चौहान राजा जयचंद की इस चाल को समझ नहीं पाए और इस तरह जयचंद के धोखेबाज सैनिकों ने पृथ्वीराज चौहान के सैनिकों का संहार कर दिया, और इस युद्ध के बाद मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र चंद बरदाई को अपने जाल में फंसाकर उन्हें बंधक बना लिया और उन्हें अपने साथ Afghanistan ले गया।
इसके बाद मोहम्मद गौरी ने Delhi, Punjab, Ajmer और कन्नौज में शासन किया। हालांकि राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद कोई भी राजपूत शासक भारत में अपना राज़ जमाकर अपनी बहादुरी साबित नहीं कर पाया। पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित होने के बाद मोहम्मद गौरी अंदर ही अंदर प्रतिशोध की भावना से भर गया था। इसलिए बंधक बनाने के बाद पृथ्वीराज चौहान को उसने कई शारीरिक यातनाएं दी एवं पृथ्वीराज चौहान को मुस्लिम बनने के लिए भी प्रताड़ित किया।

वहीं काफी यातनाएं सहने के बाद भी वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी के सामने झुके नहीं और दुश्मन के दरबार में भी उनके माथे पर किसी तरह की शिकन नहीं थी। इसके साथ ही वे अमानवीय कृत्यों को अंजाम देने वाले मोहम्मद गौरी की आँखों में आँखें डालकर पूरे आत्मविश्वास के साथ देखते रहे, जिसके बाद गौरी ने उन्हें अपनी आंखें नीची करने का आदेश भी दिया। लेकिन इस राजपूत योद्धा पर तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ा।
जिस को देखकर मोहम्मद गौरी का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया और उसने पृथ्वीराज चौहान की आंखें गर्म सलाखों से जला देने का आदेश दिया। यही नहीं, आंखें जला देने के बाद भी क्रूर शासक मोहम्मद गौरी ने उन पर कई जुल्म किये और अंत में
पृथ्वीराज चौहान को जान से मार देने का फैसला किया। वहीं इससे पहले मोहम्मद गौरी की पृथ्वीराज चौहान को मार देने की साजिश कामयाब होती पृथ्वीराज चौहान के बेहद करीबी मित्र और राजकवि चंद बरदाई ने मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चौहान की शब्दवेदी बाण चलाने की खूबी बताई।
जिसके बाद मोहम्मद गौरी हंसने लगा कि भला एक अंधा कैसे बाण चला सकता है। लेकिन बाद में गौरी अपने दरबार में तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन करने के लिए राजी हो गया। वहीं इस प्रतियोगिता में शब्दवेधी बाण चलाने के उस्ताद पृथ्वीराज चौहान ने अपने मित्र चंदबरदाई के दोहों के माध्यम से अपनी अद्भुत कला दिखाई और भरी सभा में पृथ्वीराज चौहान ने चंद बरदाई के दोहों की सहायता से मोहम्मद गौरी की दूरी और दिशा को समझते हुए गौरी के दरबार में ही उसका वध कर दिया।
ये दोहा कुछ इस प्रकार था।

इसके बाद पृथ्वीराज चौहान और चंद बरदाई ने अपने दुश्मनों के हाथों मरने के बजाय एक दूसरे पर बाण चलाकर अपनी जीवनलीला खत्म कर दी। वहीं जब राजकुमारी संयोगिता को इस बात की खबर लगी तो उन्होंने भी पृथ्वीराज चौहान के वियोग में अपने प्राण दे दिए।
FAQ:
1. पृथ्वीराज चौहान मृत्यु ? (Prithviraj Chauhan Death)
➤ 11 मार्च 1192 अजमेर (आंग्ल पंचांग के अनुसार)
2. पृथ्वीराज चौहान कद? (Prithviraj Chauhan Height)
➤ १०० अंगुलम - (Google के अनुसार)
3. पृथ्वीराज चौहान जाति? (Prithviraj Chauhan Cast)
➤ क्षत्रिय या जाट ( विवाद हैं)
4. पृथ्वीराज चौहान जन्म तिथि /जन्मदिन? (Prithviraj Chauhan Birth Date /Birthday)
➤ 1 जून 1163 (आंग्ल पंचांग के अनुसार)
5. पृथ्वीराज चौहान आयु? (Prithviraj Chauhan Age)
➤ 28 वर्ष (मृत्यु के समय )
6. पृथ्वीराज चौहान किला? (Prithviraj Chauhan Fort)
➤ हांसी, असीगढ़ किला, असीगढ़ किला, तारागढ़ किला।
7. पृथ्वीराज चौहान पत्नी का नाम? (Prithviraj Chauhan Wife Name)
➤ संयोगिता।
8. पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई? How Prithviraj Chauhan Died
➤ मोहम्मद गौरी को मरने के बाद पृथ्वीराज चौहान और चंद बरदाई ने अपने दुश्मनों के हाथों मरने के बजाय एक दूसरे पर बाण चलाकर अपनी जीवनलीला खत्म कर दी।
9. पृथ्वीराज चौहान पुत्र? Prithviraj Chauhan Son
➤ गोविंद चौहान।
तो दोस्तों यह थी Prithviraj Chauhan history in hindi. पृथ्वीराज चौहान के बारे मै पढ़ कर आपको कैसा लगा comment मै बताइए। इसी तरह की interesting और informative story के लिए हमारे blog "Hindi Best Stories" को आप Bookmark या Save कर ले।
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