Munshi Premchand ki Kahani in Hindi - कफ़न Story in Hindi
स्वागत है हमारे Blog, Hindi Best Stories में, दोस्तों कहानी की बात होती है तो १ नाम है जो बहुत प्रसिद्ध है, नाम है " मुंशी प्रेमचंद जी " दोस्तों उन्होंने बहुत कहानियां लिखी है अपने जमाने में और बहुत सारी कहानी बहुत प्रसिद्ध भी हुई है। उन्हीं में से एक कहानी का नाम है (kafan) कफ़न। देखते हैं यह Munshi Premchand ki Kahani in Hindi में प्रेमचंद जी ने क्या लिखा है। तो चलिए शुरू करते हैं Munshi Premchand ki Kahani in Hindi में।
ये कहानी एक गांव के हरिजन परिवार की है, उस परिवार में घीसू, उसका बेटा माधव और उसकी गर्भवती पुत्रवधू, ये तीन सदस्य थे। घीसू और माधव दोनों अव्वल दर्जे के कामचोर और आलसी थे। जब घर में उन्हें खाने को कुछ ना मिलता तो दोनों दूसरों के खेतों से मटर, आलू या उख चोरी करके अपना पेट भरा करते थे।
माधव का ब्याह बुधिया से कोई साल भर पहले हुआ था, ब्याह के बाद से वह बेचारी मेहनत मजदूरी करके इन निकम्मों का पेट पालती थी। उस सर्द रात भी दोनों बाप बेटे किसी के खेत से चुराए आलू अपने झोपड़े के द्वार पर बुझे अलाव के सामने भूनकर खा रहे थे। उधर, झोपड़े के अंदर गर्भवती बुधिया प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी।
घीसू - मालूम होता है, बचेगी नहीं सारा दिन दौड़ते हो गया जा देख तो आ।
माधव - मरना ही है तो जल्दी मर क्यों नहीं जाती? देखकर क्या करूँ?
घीसू - तू बड़ा बेदर्द है, साल भर जिसके साथ सुख चैन से रहा उसी के साथ इतनी बेवफाई।
माधव - मुझसे तो उसका तड़पना और हाथ पांव पटकना नहीं देखा जाता।

घीसू ने आलू निकालकर छीलते हुए कहा जा कर देख तू क्या दशा है उसकी? माधव को भय था युवा कोठरी में गया तो घीसू आलुओं का बड़ा भाग साफ कर देगा। दोनों जल्दी जल्दी आलू को आग पर से उठा कर खाने लगे। आलू खाकर दोनों ने पानी पीया और वहीं अलाव के सामने अपनी धोतियाँ ओढ़कर पांव पेट में डाले सो गए। (Munshi Premchand ki Kahani in Hindi)
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सवेरे माधव ने कोठरी में जाकर देखा तो बुधिया मरी पड़ी थी। माधव भागा हुआ घीसू के पास आया फिर दोनों ज़ोर ज़ोर से छाती पिट पिट कर रोने लगे उनका रोना धोना सुन पड़ोस वाले उन्हें समझाने बुझाने लगे। बाप बेटे रोते हुए गांव के जमींदार के पास गए, वो इन दोनों की सूरत से नफरत करता था। वो कई बार इन्हें चोरी करने के लिए वादे पर काम ना आने के लिए अपने हाथों से पिट चुका था।
जमींदार - क्या है घीसूवा, रोता क्यों है? अब तो तू कही दिखलाई भी नहीं देता, इस गांव में रहना चाहता है या नहीं?
घीसू ने जमीन पर सिर रखकर आँखों में आंसू भरे हुए कहा। सरकार बड़ी विपत्ति में हूं, माधव की घरवाली रात को गुजर गयी सरकार की दया होगी तो उसकी मिट्टी उठेगी।
जमींदार - यूं तो बुलाने पर भी नहीं आता, आज जब जरूरत पड़ी है तो आकर खुशामद कर रहा है। ज़मींदार ने कुढ़ते हुए २ रुपये निकालकर फेंक दिए। जब जमींदार ने दो रुपये, दिए तो गांव के बनिये, महाजनों को इनकार का साहस कैसे होता? एक घंटे में घीसू के पास पांच रुपए की अच्छी रकम जमा हो गई। इस रकम से दोपहर को घीसू और माधव बाज़ार से कफ़न लाने चले, इधर लोग अर्थी के लिए बांस काटने लगे, बाजार में पहुँचकर घीसू बोला।
घीसू - लकड़ी तो उसे जलाने भर को मिल गई है, अब तो चलो कोई हल्का सा कफ़न ले ले।
माधव - हाँ और क्या लाश उठते उठते रात हो जाएगी? रात को कफ़न कौन देखता है।
घीसू - कैसा बुरा रिवाज है की जिसे जीते जी तन ढाँकने को चीथड़ा भी ना मिले, उसे मरने पर नया कफ़न चाहिए।
माधव - कफ़न लाश के साथ चल ही तो जाता है।
दोनों बाजार में इधर उधर घूमते रहे, पूरा दिन बीत जाने पर दोनों आँखों आँखों में इशारेबाजी करते हुए शराबखाने पर पहुँच गए और वहाँ से शराब की बोतल खरीदी और बरामदे में बैठकर शान्तिपूर्वक पीने लगे। कई कुंजियाँ ताबड़तोड़ पीने के बाद दोनों सरूर में आ गए।
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घीसू - कफ़न लगाने से क्या मिलता? आखिर जल् ही तो जाता, कुछ बहू के साथ तो ना जाता। बड़े आदमियों के पास धन है फुके, हमारे पास फुकने को क्या है?

माधव - लेकिन लोगों को जवाब क्या दोगे? लोग पूछेंगे नहीं, कफ़न कहाँ है।
घीसू - कह देंगे के रुपये खो गए, बहुत ढूंढा, मिले नहीं लोगों को विश्वास ना आएगा, लेकिन फिर वही रुपये देंगे। बड़ी अच्छी थी बेचारी मरी भी तो खूब खिला पिला कर।
आधी बोतल से ज्यादा उड़ा देने के बाद घीसू ने शराबखाने के सामने ही दुकान से दो शेरपुरिया, चटनी, अचार, कलीजि मंगवाई। माधव पुरा १.५० रुपया खर्च करके सामान ले आया, अब सिर्फ थोड़े से पैसे ही बचे थे। दोनों इस वक्त इस शान में बैठे पूडियाँ खा रहे थे, ना जवाब देही का खौफ था ना बदनामी की फिक्र। इन सब भावनाओं को उन्होंने बहुत पहले ही जीत लिया था, एक क्षण के बाद माधव के मन में एक शंका जागी। Read full story - Munshi Premchand ki Kahani in Hindi.
माधव - क्यों दादा हम लोग भी एक ना एक दिन वहाँ जाएंगे ही?
घीसू ने इस भोले भाले सवाल का कुछ उत्तर न दिया, वो परलोग की बातें सोच कर इस आनंद में बाधा नहीं डालना चाहता था, माधव फिर बोला। जो वहाँ हम लोगों से पूछे की तुमने हमें कफ़न क्यों नहीं दिया ? तो क्या कहोगे?
घीसू - तू कैसे जानता है कि उसे कफ़न न मिलेगा, तुम मुझे ऐसा गधा समझता है? उसको कफ़न मिलेगा और बहुत अच्छा मिलेगा।
माधव - कौन देगा? रुपये तो तुमने चट कर दिये, वो तो मुझसे पूछेगी उसकी मांग में तो संदूर मैंने डाला था, कौन देगा , बताते क्यों नहीं?

घीसू - वही लोग देंगे जिन्होंने अबकी दिया, हाँ,अबकी रुपये हमारे हाथ ना आएँगे।
ये दोनों बाप बेटे अभी मज़े ले लेकर चुसकियाँ ले रहे थे। दोनों की भरपेट खाने के बाद माधव ने बची हुई पूडियों का पत्थर उठाकर एक भिखारी को दे दिया। जो खड़ा इनकी ओर भूखी आँखों से देख रहा था और इस दान के आनंद का अपने जीवन में पहली बार अनुभव किया।
घीसू - ले जा, खूब खा और आशीर्वाद दे जिसकी कमाई है वो तो मर गई, मगर तेरा आशीर्वाद उसे जरूर पहुंचेगा रोये रोये से आशीर्वाद दो बड़ी गाड़ी कमाई के पैसे है।
अचानक माधव बोला - मगर दादा, बेचारी ने ज़िन्दगी में बड़ा दुख भोगा, कितना दुख झेलकर मरी। वो आँखों पर हाथ रखकर रोने लगा घीसू ने समझाया।
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क्यू रोता है बेटा खुश हो की वो मायाजाल से मुक्त हो गयी, जंजाल से छूट गयी बड़ी भाग्यवान थी जो इतनी जल्दी मोह माया के बंधन तोड़ दिये।

पियक्कड़ों की आँखें उनकी ओर लगी हुई थी और ये दोनों अपने दिल में मस्त नाचते उछलते, कूदते, नशे में मदमस्त होकर वहीं गिर पड़े और उधर गांव में बेचारी बुधिया की लाश का अंतिम संस्कार गांव वालों ने जैसे तैसे कर दिया।
तो यह थी मुंशी प्रेमचंद की कहानी हिंदी में जिसका नाम है कफ़न। दोस्तों उम्मीद करता हूं, आपको Munshi Premchand ki Kahani in Hindi, अच्छी लगी होगी। Comment में बताइए आपने यह कहानी कब सुनी थी, School, College या किसी घर वालों के मुंह से। ऐसे ही नई कहानी पढ़ने के लिए आप हमारे Blog को save करे।
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